Read ‘Girgit Neta Ji’, by Narendra Prakash “Neeraj” a Hindi funny poem that exposes the true colors of some politicians who skillfully switch parties for their personal gains. Through wit and satire, the piece highlights the ever-changing shades of political manoeuvering.
कल जो थे आसमां अब जमीं हो गए
जितने भी मुर्ख थे सब गुणी हो गए
पानी पी-पी के वो कोसते थे जिन्हें
पलटी खाते ही सब माननीय हो गए
लोक को नोच कर के ये खाते रहे
जनता रोती रही, ये रुलाते रहे
पूंजीपतियों से ये आए लड़ने थे पर
इस तरह से लड़े खुद धनी हो गए| पलटी खाते ही …
एक नए साचें में रोज ढलते है ये
सांप है, आस्तीनों में पलते है ये
बात मानों मेरी, है विषय शोध का
कैसे गिरगिट से ये आदमी हो गए| पलटी खाते ही …
बह रही धार के ही सहारे है ये
तुमसे मतलब है तो ही तुम्हारे है ये
वक़्त पलटेगा जब, आप भी देखेंगे
कैसे आम से वो मौसमी हो गए| पलटी खाते ही …
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